अपने चेहरे पे ज्यादा न रीझा करें
ये रहेगा न ऐसा ही सोचा करें
जो मिला है उसी में सदा खुश रहें ये रहेगा न ऐसा ही सोचा करें
ज़िंदगी से कभी हम न रूठा करें
और दौलत की ख्वाहिश रुलाये बहुत
बात सच है इसे हम भी देखा करें
जो हैं अपने वो नाराज़ न हों कभी
कुछ भी कहते हुए खुद को टोका करें
सच कहेंगे मगर कुछ नरम भी रहें
खामखा, बेसबब हम ना ऐठा करें
'कल' हमें ये जहाँ याद करता रहे
काम कुछ तो यहाँ 'आज' ऐसा करें
दूसरों पे तो हँसना सरल है बहुत
खुद के भीतर भी हम कुछ निहारा करें
हारने से कभी बात बनती नहीं
काम दोबार या फिर तिबारा करें
जिसको समझा है अपना तो भूलें नहीं
वक़्त आए तो बेशक पुकारा करें
सुख मिलेगा हमें ज़िंदगी का व्हाँ
कुछ घड़ी अपनों के साथ बैठा करें
आपकी नायाब पोस्ट और लेखनी ने हिंदी अंतर्जाल को समृद्ध किया और हमने उसे सहेज़ कर , अपने बुलेटिन के पन्ने का मान बढाया उद्देश्य सिर्फ़ इतना कि पाठक मित्रों तक ज्यादा से ज्यादा पोस्टों का विस्तार हो सके और एक पोस्ट दूसरी पोस्ट से हाथ मिला सके । रविवार का साप्ताहिक महाबुलेटिन लिंक शतक एक्सप्रेस के रूप में आपके बीच आ गया है । टिप्पणी को क्लिक करके आप सीधे बुलेटिन तक पहुंच सकते हैं और अन्य सभी खूबसूरत पोस्टों के सूत्रों तक भी । बहुत बहुत शुभकामनाएं और आभार । शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना...
ReplyDeleteबहुत सही शिक्षा दी है आपने।
ReplyDeleteआभार।
............
International Bloggers Conference!
एक शिक्षाप्रद अच्छी रचना के लिए आभार |
ReplyDeleteआशा
वाह,....
ReplyDeleteबहुत खूब.
सादर
अनु
आज 26/07/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
शब्द-शब्द में बहुत ही सुन्दर बात कहा है आपने..
ReplyDeleteमन को छूती पंक्तियाँ... :)
ReplyDeletegyaan aur shiksha se bharpur,
ReplyDeleteek khubsurat rachna.
padh kar is tarah rachna har
insaan apne dosh sudhara kare.
behtareen prastuti,badhayee
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