Sunday, July 22, 2012


अपने चेहरे पे ज्यादा न रीझा करें
ये रहेगा न ऐसा ही सोचा करें

जो मिला है उसी में सदा खुश रहें
ज़िंदगी से कभी हम न रूठा करें


और दौलत की ख्वाहिश रुलाये बहुत
बात सच है इसे हम भी देखा करें 


जो हैं अपने वो नाराज़ न हों कभी
कुछ भी कहते हुए खुद को टोका करें 


सच कहेंगे मगर कुछ नरम भी रहें
खामखा, बेसबब हम ना ऐठा करें


'कल' हमें ये जहाँ याद करता रहे
काम कुछ तो यहाँ 'आज' ऐसा करें 


दूसरों पे तो हँसना सरल है बहुत
खुद के भीतर भी हम कुछ निहारा करें


हारने से कभी बात बनती नहीं
काम दोबार या फिर तिबारा करें 


जिसको समझा है अपना तो भूलें नहीं
वक़्त आए तो बेशक पुकारा करें 


सुख मिलेगा हमें ज़िंदगी का व्हाँ
कुछ घड़ी अपनों के साथ बैठा करें 

10 comments:

  1. बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना...

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  2. बहुत सही शिक्षा दी है आपने।

    आभार।

    ............
    International Bloggers Conference!

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  3. एक शिक्षाप्रद अच्छी रचना के लिए आभार |
    आशा

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  4. वाह,....
    बहुत खूब.

    सादर
    अनु

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  5. आज 26/07/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. शब्द-शब्द में बहुत ही सुन्दर बात कहा है आपने..

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  7. gyaan aur shiksha se bharpur,
    ek khubsurat rachna.
    padh kar is tarah rachna har
    insaan apne dosh sudhara kare.

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