Wednesday, August 1, 2012

करो नहीं प्रतिवाद हमारी बस्ती में/ बैठे हैं जल्लाद हमारी बस्ती में

करो नहीं प्रतिवाद हमारी बस्ती में
 बैठे हैं जल्लाद हमारी बस्ती में

मर जाओ भूखे-प्यासे, कर लो नारे
डंडे हैं आबाद हमारी बस्ती में

इधर-उधर सब शातिर-जुल्मी बैठे हैं 
किनसे हो फ़रियाद हमारी बस्ती में

जीने भी न देंगे केवल मरने पर
करेंगे हमको याद हमारी बस्ती में

लोकतंत्र को दमनतंत्र क्यों कर डाला 
खुल कर हो संवाद हमारी बस्ती में

'हिरनकश्यप' और 'होलिकाएं' देखो
गुम है अब प्रहलाद हमारी बस्ती में

सच्चे मारे जाते हैं अब तो केवल
चमचे हैं दामाद हमारी बस्ती में

इंकलाब को अगर कुचल कर रख दोगे
क्या हो इसके बाद हमारी बस्ती में

लोकतंत्र शर्मिन्दा है, 'बापू' तुझको
करते हैं सब याद हमारी बस्ती में

कविता का उपहास उड़ाया जाता है
चुट्कुल्लों को दाद हमारी बस्ती में

कुर्सी पे बैठे है सारे चोर यहाँ
होंगे सब बरबाद हमारी बस्ती में

5 comments:

  1. बहतरीन लिखा है गिरीश जी...

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  2. इंकलाब को अगर कुचल कर रख दोगे
    क्या हो इसके बाद हमारी बस्ती में,,,,,

    वाह,,,बहुत खूब,,,,,गिरीश जी,,,
    बेहतरीन रचना के लिए बधाई,,,,

    रक्षाबँधन की हार्दिक बधाई,शुभकामनाए,,,
    RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,

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  3. बहुत बढ़िया सर!


    सादर

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  4. बेहतरीन रचना के लिए बधाई

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  5. शानदार गजल भईया...
    सादर प्रणाम.

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