''सद्भावना दर्पण'

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एक प्रार्थना / ज़िंदगी सुन्दर रहे

>> Thursday, April 4, 2013

एक प्रार्थना
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ज़िंदगी सुन्दर रहे
नित्य ही बेहतर रहे


प्यार ही बस प्यार हो
वह कोई भी दर रहे 


देखती है आत्मा
बस यही इक डर रहे


सामने आकाश है
हौसलों का 'पर' रहे


बस प्रभू के सामने
अपना झुका ये सर रहे


हर किसी के वास्ते ही
दोस्तो, अवसर रहे 


हो अँधेरा किन्तु भीतर
रौशनी का घर रहे 


दिल दुखाना क्यों, कोई
आंसुओं से तर  रहे

5 टिप्पणियाँ:

Shah Nawaz April 4, 2013 at 11:52 PM  

वाह! बहुत खूब लिखा गिरीश जी...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया April 5, 2013 at 12:29 AM  

वाह ,,, बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,पंकज जी

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SANJAY TRIPATHI April 5, 2013 at 7:31 AM  

अति सुंदर!

vandana gupta April 6, 2013 at 12:02 AM  

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (6-4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!

Rajesh Kumari April 6, 2013 at 8:38 AM  

आदरणीय गिरिजेश जी लाजबाब प्रस्तुति बहुत सुन्दर मन के भाव आपको बधाई

सुनिए गिरीश पंकज को

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