''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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देश हमें हो प्राण से प्यारा, वन्दे मातरम........................

>> Thursday, May 9, 2013

सबसे पहला धर्म हमारा, वन्दे मातरम
देश हमारा सबसे न्यारा, वन्दे मातरम

देश है सबसे पहले, उसके बाद धर्म आये
सोचो इस पर आज दुबारा,  वन्दे मातरम

हिन्दू मुस्लिम, सिख, ईसाई बातें हैं बेकार
देश हमें हो प्राण से प्यारा, वन्दे मातरम

जहां रहें, हम जहां भी जाएँ रखे वतन को याद 
जिसने अपना आज संवारा, वन्दे मातरम

देश विरोधी लोगों को हम सिखलाएँ यह बात
सुबह-शाम बस एक हो नारा,  वन्दे मातरम

देश हमारी आन-बान है देश हमारी शान
लायेंगे घर-घर उजियारा,  वन्दे मातरम

भारत मटा तुम्हें बुलाती लौटो अपने देश
घर आओ ये कितना प्यारा,  वन्दे मातरम

जातिधर्म की ये दीवारे कब तक कैद रहें?
तोड़ो-तोड़ो अब ये कारा,  वन्दे मातरम

ध्वज अपना  है, भाषा अपनी,  राष्ट्रगान का मान
राष्ट्र प्रेम की सच्ची धारा,  वन्दे मातरम

देश प्रेम ही विश्व प्रेम की है सच्ची शुरुआत,
बिन इसके न होय गुजारा,  वन्दे मातरम

5 टिप्पणियाँ:

Unknown May 9, 2013 at 8:11 AM  

बहुत बहुत बधाई आदरणीय गिरीश जी ........


देश विरोधी लोगों को हम सिखलाएँ यह बात
सुबह-शाम बस एक हो नारा, वन्दे मातरम



बहुत उम्दा रचना



जय हिन्द !

संगीता पुरी May 9, 2013 at 8:15 AM  

वंदे मातरम् !!

Shalini kaushik May 9, 2013 at 12:47 PM  

बहुत प्रभावशाली प्रस्तुति .एकदम सही .बधाई

ब्लॉग बुलेटिन May 10, 2013 at 2:08 AM  

ब्लॉग बुलेटिन की ५०० वीं पोस्ट ब्लॉग बुलेटिन की ५०० वीं पोस्ट पर नंगे पाँव मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

गिरिजा कुलश्रेष्ठ May 10, 2013 at 1:50 PM  

बहुत ही सहज शब्दों में बहती हुई सी यह कविता व्यक्ति से आगे देश तक लेजाती है । धन्यवाद इस कविता के लिये ।

सुनिए गिरीश पंकज को

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