''सद्भावना दर्पण'

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कविता / शांतिप्रिय नागरिक के गुण

>> Saturday, September 7, 2013

कुछ लोग बड़े ही शांतिप्रिय नागरिक होते हैं
इसलिए वे कहते हैं-

जो लोग सडको पर
अपनी जायज मांगों के लिए

 जुलूस निकाल कर
ट्रैफिक जाम करते है,

 उन्हें गोली मार दो
चाहे जेल में ठूस दो

 जो लोग
अपनी बात कहने के लिए
संसद या विधान सभाओं की ओर

 कूच करते रहते हैं
उन्हें गिरफ्तार करके / जेलों में ठूँस दो
उन पर डंडे बरसाओ।
जो लोग रात को

बाइक पर मटरगश्ती करते हैं
उन्हें भी गोली मार दो
बंद करो आन्दोलन, धरने, नारे
बहुत 'डिस्टर्व' करते हैं ये लोग
इनको नहीं है जीने का हक़.
जीने का हक सिर्फ हमको है
क्योंकि हम शांतिप्रिय नागरिक हैं

 जो दुःख सह लेते हैं
महंगाई से विचलित हो कर भी

 कभी सड़कों पर नहीं उतरते
रिश्वत दे कर निकाल लेते है अपना काम
नहीं लेते कभी पुलिस से पंगा
कभी नहीं करते सरकार के खिलाफ कोई दंगा
हम टीवी चेनलो के

 हास्य कार्यक्रमों को देख कर
चैन की नींद सोते हैं 

और अच्छे-अच्छे सपने देखते हैं
दरअसल हमारे संविधान ने उन्हें ही दिया है
जीने का सच्चा हक
आओ, शांतिप्रिय नागरिक बनने के कुछ गुण सीखें
और शान से जीयें
सरकार को, पुलिस को भी

 और अमन-चैन पसंद जनता को भी
चैन से जीने दें
हमें ऐसा लोकतंत्र बनाना है

 जहां 'लोक' भी हो 'तंत्र' भी
मगर लोकतंत्र ?

उसकी अब ज़रुरत भी कहाँ रही

4 टिप्पणियाँ:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया September 7, 2013 at 9:00 AM  

हमें ऐसा लोकतंत्र बनाना है
जहां 'लोक' भी हो 'तंत्र' भी...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,,
RECENT POST : समझ में आया बापू .

Darshan jangra September 7, 2013 at 11:56 AM  

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार-8/09/2013 को
समाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





Satish Saxena September 7, 2013 at 8:14 PM  

सही है ..

Unknown September 8, 2013 at 7:11 AM  

shantipriy insan hi banna hai....loktantra ki ab jarurat kaha...bahut achhe.....

सुनिए गिरीश पंकज को

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