लगे हैं रौशनी के गीत गुनगुनाते हैं
''अंधेरी रात में जब दीप झिलमिलाते हैं''
अन्धेरा हमको डराता रहा ये माना के
मगर हो दीप हाथ में तो मुस्कराते हैं
हमेशा अपने लिए हम तो जी नहीं सकते
चलो जहां तलक हो रौशनी लुटाते हैं
कोई भी दर हो अँधेरा फटक नहीं सकता
समझ के अपना ही घर दीप हम जलाते हैं
सुना है हमने यही के अँधेरे ज़ालिम हैं
मगर ये सच हैं रौशनी से खौफ खाते हैं
अगर हो साथ में दीपक तो डर नहीं लगता
चले हैं शान से औ रास्ते बनाते हैं
आपको दीपावली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteकल 24/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !