''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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अंतहीन आकाश हमारा और पंख ही पास नहीं

>> Monday, November 10, 2014



अंतहीन आकाश हमारा और पंख ही पास नहीं
लक्ष्य काम का अच्छा है पर होगा कुछ भी खास नही

साथ हमारे आएं जिनको पथरीले-पथ प्यारे हैं
जिनको सुविधाये भाती हैं उनकी हमें तलाश नहीं

उसको कब मिल सकी सफलता 'किन्तु-लेकिन' में अटका
उस पर कैसे यकी करें जिसको खुद पे विशवास नहीं

आसमान से तारे ले कर आने वाले देख लिए
उनको अपनी ताकत का ही रत्ती भर अहसास नहीं

बहुत अधिक पाने की खातिर क्यों गिरना ईमान से
सच बोले तो अपने भीतर ऐसी कोई प्यास नहीं

जिसने वक्त गंवाया कोई ठोस काम न कर पाया
जीते हैं वे पशु सरीखे उनका कुछ इतिहास नहीं

वक्त बड़ी तेजी से 'पंकज' भाग रहा है देखो तो
बात करो कुछ ठोस चलेगी अब कोई बकवास नहीं

2 टिप्पणियाँ:

महेन्‍द्र वर्मा November 11, 2014 at 5:43 AM  

बहुत अधिक पाने की खातिर क्यों गिरना ईमान से
सच बोले तो अपने भीतर ऐसी कोई प्यास नहीं

बेमिसाल शेर और शानदार ग़ज़ल।

शुभकामनाएं !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने November 12, 2014 at 12:08 AM  

बहुत ख़ूब!!

इतनी प्रेरक गज़ल आपकी, सीख सबों को देती है,
जीवन में भर लें हम इनको, ऐसी कोई उजास नहीं!

शुभकामनाएँ!!

सुनिए गिरीश पंकज को

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