''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
&COPY गिरीश पंकज संपादक सदभावना दर्पण. Powered by Blogger.

विश्वास हैं बच्चे

>> Friday, November 14, 2014


इस अराजक दौर में विश्वास हैं बच्चे
आस्थाओं के विमल आकाश हैं बच्चे

हम तो बुझते दीप हैं इस रात के यारो
आएगी जो भोर उसकी आस हैं बच्चे

देवता किस लोक में रहते नहीं मालूम
देवता हैं इनमे ये अहसास हैं बच्चे

आचरण के निर्वसन होने से पहले तुम
भूल मत जाना तुम्हारे पास हैं बच्चे

आज फिर लौटे हैं खाली हाथ क्यूँ पापा
आज है त्यौहार और उदास हैं बच्चे

2 टिप्पणियाँ:

कविता रावत November 15, 2014 at 5:55 AM  

आज फिर लौटे हैं खाली हाथ क्यूँ पापा
आज है त्यौहार और उदास हैं बच्चे
..आस हर बच्चें को रहती है .... लेकिन सबकी किस्मत एक सी नहीं .....बाल दिवस पर सार्थक प्रस्तुति

चला बिहारी ब्लॉगर बनने November 18, 2014 at 7:36 AM  

बहुत सुन्दर!! दिल को छूती हुई रचना!!

सुनिए गिरीश पंकज को

  © Free Blogger Templates Skyblue by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP