''सद्भावना दर्पण'

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कविता / देवताओ सुनो

>> Monday, November 3, 2014

कविता / देवताओ सुनो 
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सुना है कि देवता उठ गए हैं 
तैयार हो कर अब वे क्या करेंगे?
आराम फरमाएंगे या करेंंगे असुरो का संहार?
चारो तरफ बढ़ते ही जा रहे है असुर
इसलिए अच्छा हुआ कि 

सही समय पर जाग गए है देवता
हम से तो नहीं मर पाएंगे बड़े-बड़े दैत्य
देवता ही निबटते रहे है इनसे।
देवता चाहे तो हमारे शरीर को गला कर बना ले कोई बज्र
मगर जितनी जल्दी हो सके ख़त्म करे दैत्यों को।
असुर अब भयानक अट्टहास नहीं करते
वे अदब से मुस्कराते है देवताओं की तरह
उनका पहरावा भी होता है सलीकेदार
लगते है जैसे देव हो कोई मगर वे होते है भयंकर दानव।
ओ जगे हुए हमारे देवताओ, तुम उतारो धरा पर
और करो संहार हाईटेक असुरो का
अगर अभी नहीं मरे ये असुर तो कभी नहीं मरेंगे
इसके पहले की मर जाएँ हम सब लोग
देवताओ सुनो, कर ही डालो असुरो का विनाश
मुक्त करो धरती को पापियों से.
तुम्हारे चरणो पर चढ़ाते है रक्त-पुष्प
देवताओ सुन लो अरज हमारी
वो देखो, बढ़े आ रहे है असुर हमारी तरफ
प्रिय देवताओ, फ़ौरन आओ
क्योंकि देर करने से हो जाएगी बहुत देर .

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