''सद्भावना दर्पण'

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आ गईं बेटियां तो खुशी आ गई

>> Saturday, December 27, 2014

आ गईं बेटियां तो खुशी आ गई
यूं लगे फिर नई ज़िंदगी आ गई

घर था प्यासा लगे एक सहरा हुआ
बेटी आई तो जैसे नदी आ गई

घर का कोना तो जैसे अँधेरे में था
एक बेटी से फिर रौशनी आ गई

मुझको मेरी इबादत अधूरी लगी
बेटी तुमसे मुझे बंदगी आ गई

कल तलक बेटियों को रखा बाँध कर
अब तो जैसे उन्हीं की सदी आ गई

ज्ञान जैसे मिला ज़िंदगी में उसे
उसके जीवन में इक सादगी आ गई

मौत का फलसफा जो भी समझे यहाँ
खुद-ब-खुद ही उसे बेखुदी आ गई

दिल ने इंसानियत का सबक पढ़ लिया
जाने कैसे तनिक शायरी आ गई

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