नदी- दिवस - प्रस्तुत हैं तीन मुक्तक
>> Saturday, March 14, 2015
नदी को गर बचाएंगे नदी हमको बचाएगी
अगर प्यासे रहेंगे तो हमें पानी पिलाएगी
नदी है माँ हमारी उसपे कोई आंच न आए
अगर वो मिट गयी तो फिर हमे भी वो मिटाएगी.
नदी को एक कूड़ादान तो हमने बनाया है
प्रदूषित जल, प्रदूषित मन भी हमने ही मिलाया है
'नदी' को 'दीन' करने का किया है पाप मानव ने
हमीं ने इस सुधा में आके कितना विष मिलाया है
नदी का जल नहीं है जल इसे अमृत समझना है
अगर है जल तो अपना कल भी इससे ही संवरना है
नदी को एक नाले में बदल कर क्या मिला सेठो
तुम्हारी इक हवस से हमको तो बेमौत मरना है
1 टिप्पणियाँ:
http://parikalpnakosh.org/index.php?title=%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B6_%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%9C
Post a Comment