पिंजरे में रह-रह कर तोता उड़ना भूल गया
उसको भी उड़ने का हक है कहना भूल गया
पंख है उसके कितने सुंदर मगर न उड़ पाए
उड़ने की क्या बात है पंछी चलना भूल गया
सोने का हो पिंजरा लेकिन वह तो है पिंजरा
सम्मोहन में पंछी खुद को गुनना भूल गया
दीपक के कारण ही जग में अंधियारा कायम
रात हुई तो जाने क्यों वह जलना भूल गया
स्वारथ बढ़ता गया नतीजा यही दिखा पंकज
मानव मानव यहॉं प्यार से रहना भूल गया
@ गिरीश पंकज
सोने का हो पिंजरा लेकिन वह तो है पिंजरा
ReplyDeleteसम्मोहन में पंछी खुद को गुनना भूल गया
ये सम्मोहन ही खुद को भूल जाता है ।।बेहतरीन ग़ज़ल ।
वाह
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