''सद्भावना दर्पण'

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बालिका दिवस पर ग़ज़ल

>> Monday, January 24, 2022

सुंदर हैं, दुलारी हैं, मधुबन हैं बेटियाँ
महका रही हैं आँगन चंदन हैं बेटियाँ

इनको जतन से रखिए इनको सँवारिए
वरदान में जो पाया वो धन हैं बेटियाँ

बेटे कपूत निकले, बेटी नहीं निकली
है त्याग इसका नाम, समर्पन हैं बेटियाँ

इनसे न दुराचार करो नरक मिलेगा
जीवंत देवियाँ हैं, वंदन हैं बेटियाँ

बेटे भले ही भूले गए ये नही भूलीं
पतझर के बाद लगता सावन हैं बेटियाँ

ये जब भी खनकती हैं बढ़ जाएँ रौनकें
हीरो से जड़ी जैसे कंगन हैं बेटियाँ

हम कौन हैं और क्या हैं बता देती हैं यही
सच पूछिए तो ऐसा दरपन हैं बेटियाँ

रखना इन्हें बचा के दृष्टि हुई मैली
चारों तरफ लुटेरे और धन हैं बेटियाँ

@ गिरीश पंकज

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