''सद्भावना दर्पण'

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गीत/ वे कुछ दूर तलक चलते हैं...

>> Tuesday, February 22, 2022


जिनका पथ होता है सीधा,
वे कुछ दूर तलक चलते हैं।

संबंधों के रथ पर चढ़कर,
कुछ पाते हैं तुरत सफलता ।
स्वाभिमान जीने वाले को,
मिलती रहती यहाँ विफलता।
किंतु धैर्य रखकर के वे तो,
दीपक बनकर के जलते हैं।।

बिकने को आतुर प्रतिभाएँ,
पल भर में नीलाम हो गयीं ।
समझ न पाती हैं वे इतना,
खुद कितनी बदनाम हो गयीं ।
लोग बड़े मासूम यहाँ जो -
खुद को खुद से ही छलते हैं ।।

मेहनतकश की सूखी रोटी,
उसको मालपुआ लगती है ।
खाकर वह चुप हो जाता है,
धनपशु की लिप्सा जगती है।
पहले सुख-साँचे में, दूजे -
दुख के साँचे में ढलते हैं।।

वे कुछ दूर तलक चलते हैं।

गिरीश पंकज

11 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) February 22, 2022 at 11:09 PM  

बिकने को आतुर प्रतिभाएँ,
पल भर में नीलाम हो गयीं ।
समझ न पाती हैं वे इतना,
खुद कितनी बदनाम हो गयीं ।

बहुत लोग या तो वक़्त की मार नहीं झेल पाते या फिर आगे निकलने की बहुत जल्दी रहती है ।।
हर पंक्ति सोचने के लिए मजबूर करती हुई ।
भावपूर्ण गीत ।।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क February 23, 2022 at 7:08 AM  

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4351 में दिया जाएगा| ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
सादर धन्यवाद
दिलबाग

Meena Bhardwaj February 23, 2022 at 6:30 PM  

संबंधों के रथ पर चढ़कर,
कुछ पाते हैं तुरत सफलता ।
स्वाभिमान जीने वाले को,
मिलती रहती यहाँ विफलता।
किंतु धैर्य रखकर के वे तो,
दीपक बनकर के जलते हैं।।
बहुत अच्छी बात कही है आपने ।सुंदर सृजन ।

Manisha Goswami February 23, 2022 at 7:09 PM  

संबंधों के रथ पर चढ़कर,
कुछ पाते हैं तुरत सफलता ।
स्वाभिमान जीने वाले को,
मिलती रहती यहाँ विफलता।
किंतु धैर्य रखकर के वे तो,
दीपक बनकर के जलते हैं।।
बहुत ही उम्दा वह शानदार रचना

अनीता सैनी February 24, 2022 at 12:12 AM  

संबंधों के रथ पर चढ़कर,
कुछ पाते हैं तुरत सफलता ।
स्वाभिमान जीने वाले को,
मिलती रहती यहाँ विफलता।
किंतु धैर्य रखकर के वे तो,
दीपक बनकर के जलते हैं... वाह!यथार्थ को भी अगर सहजता से लिखा जाए तब गीत बन जाता है। मुखर हो वही हृदय में ठहर जाता है।
सराहनीय सृजन।
सादर

जिज्ञासा सिंह February 24, 2022 at 12:42 AM  

मेहनतकश की सूखी रोटी,
उसको मालपुआ लगती है ।
खाकर वह चुप हो जाता है,
धनपशु की लिप्सा जगती है।
पहले सुख-साँचे में, दूजे -
दुख के साँचे में ढलते हैं।।

वे कुछ दूर तलक चलते हैं।..यथार्थपूर्ण बहुत सुंदर गीत ।

girish pankaj February 24, 2022 at 9:15 PM  

आभारम। आपने मेरे ब्लॉगर को सक्रिय रखा।

girish pankaj February 24, 2022 at 9:15 PM  

आभारम

girish pankaj February 24, 2022 at 9:15 PM  

आभारम

girish pankaj February 24, 2022 at 9:15 PM  

आभारम

girish pankaj February 24, 2022 at 9:16 PM  

आभारम

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