बन्दो, यह तो धरम नहीं...
>> Tuesday, February 8, 2022
बन्दो,यह तो धरम नहीं !
धर्म अगर उन्माद सिखाए,
नफरत-ही-नफरत फैलाए।
तो समझो वह धर्म नहीं जो,
गलत राह पर ही ले जाए।
खुलेआम हिंसा करते हो,
तुमको थोड़ी शरम नहीं।
बन्दो,यह तो धरम नहीं !
सब जन रोटी सेंक रहे हैं,
केवल पत्थर फेंक रहे हैं।
हरकत तेरी ऊपर बैठे,
ईश्वर-अल्ला देख रहे हैं।
ऊपरवाला खुश हो कैसे,
जब अच्छे कुछ करम नहीं।
बन्दो,यह तो धरम नहीं !
लोगों को लड़वाते हैं कुछ,
कैसे जाल बिछाते हैं कुछ।
ज्यादातर तो आग लगाते,
लेकिन आग बुझाते हैं कुछ।
कैसे हिट हो राजनीति जब,
कोई मुद्दा गरम नहीं।
बन्दो,यह तो धरम नहीं !
धरम कहे ईमान न खोना।
बंद करो तुम रोना-धोना।
जीवन है यह चार दिनों का,
क्यों फिर नफरत को ही बोना।
धर्म कहे तू शील न खोना,
यह तो तेरा हरम नहीं ।
बन्दो,यह तो धरम नहीं !
धर्म हमें तहज़ीब सिखाए।
नर भी नारायण बन जाए।
करुणा-दया-प्यार से जीना,
केवल यह सद्ग्रन्थ बताए।
वह मज़हब या धर्म है कैसा
करे जो मन को नरम नहीं।
बन्दो,यह तो धरम नहीं !!
@ गिरीश पंकज
7 टिप्पणियाँ:
लोगों को लड़वाते हैं कुछ,
कैसे जाल बिछाते हैं कुछ।
ज्यादातर तो आग लगाते,
लेकिन आग बुझाते हैं कुछ।
कैसे हिट हो राजनीति जब,
कोई मुद्दा गरम नहीं।
बन्दो,यह तो धरम नहीं !
आज की यही राजनीति बची है । सच तो ये है कि ईमानदारी से अब कोई जीत भी नहीं सकता । सब आने अपने दाँव पेंच लगाते रहते हैं और जनता ट्रस्ट रहती है ।
धर्म की आड़ में सब चलता है ।
सुंदर और शिक्षाप्रद गीत ।
बेहतरीन
सादर नमन
वाह! लाज़वाब!!!
सब जन रोटी सेंक रहे हैं,
केवल पत्थर फेंक रहे हैं।
हरकत तेरी ऊपर बैठे,
ईश्वर-अल्ला देख रहे हैं।
ऊपरवाला खुश हो कैसे,
जब अच्छे कुछ करम नहीं।
बन्दो,यह तो धरम नहीं !
काश, आम जनता यह बात समझ पाए!
बेहतरीन रचना।
सशक्त सृजन।
वाह! बहुत ही उम्दा सृजन
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