ग़ज़ल
>> Thursday, May 26, 2022
राजनीति बस छल देती है
कहाँ कोई वो हल देती है
क्रूर सियासत हर सपने को
फूलों जैसा मल देती है
आँगन में तुलसी रहने दो
अम्मा इसको जल देती है
रहे हमेशा भीतर जिंदा
वही चेतना बल देती है
हमको अपनी खुशियां पंकज
हरियाली प्रतिपल देती है
2 टिप्पणियाँ:
क्रूर सियासत हर सपने को
फूलों जैसा मल देती है ।
सच को कहती अच्छे ग़ज़ल ।
आभार,संगीताजी!
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