Monday, August 29, 2022

ग़ज़ल

आदमी वैसा नहीं हूँ
भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ

ये ज़माना भूल जाए
ऐसा भी किस्सा नहीं हूँ

बोलता हूँ सच हमेशा
इसलिए अच्छा नहीं हूँ

हाँ-में-हाँ कैसे मिलाऊँ
बिक चुका बंदा नहीं हूँ

प्रेम की हूँ इक नदी मैं
आग का दरिया नहीं हूँ

मत खड़े हो जाओ मुझ पे
मैं तिरा कंधा नहीं हूँ

दूध की मक्खी निगल लूँ
मैं कोई अंधा नहीं हूँ

@ गिरीश पंकज

No comments:

Post a Comment