Wednesday, September 7, 2022

नवगीत/ आज नये दु:शासन

कल एक वीडियो देखा, जिसमें एक पेड़ को उखाड़ कर गिराया जा रहा  और असंख्य पंछी घबरा कर इधर-उधर उड़ रहे हैं। कुछ पक्षी वृक्ष से ही दबकर मर गए। यह है हमारा तथाकथित विकास, जो न तो पर्यावरण के बारे में सोच रहा है और न पेड़ों में बसने वाले पक्षियों के बारे में। इस वीडियो को देखकर बना एक गीत :
--
हरा पेड़ क्या उखड़ा सारे,
पंछी भये उदास ।
कुछ रो कर के उड़े वहाँ से,
और हुए कुछ लाश।।

हरियाली के वस्त्र हर रहे,
आज नये दुःशासन।
देखो हम तो प्रगति कर रहे,
केवल नकली भासन।
नाम प्रगति का मगर हो रहा,
प्रतिपल सत्यानाश।।

कैसा अरे विकास जो करता,
वृक्षों की हत्याएँ।
चाहे मिट जाए हरियाली,
या आए विपदाएँ।
क्या होती है पेड़ की कीमत,
करो तनिक अहसास।। 

कभी सड़क चौड़ी करनी है,
कभी बनाना घर।
बिन इसके क्या काम न चले,
कैसी अंध डगर।
धरती को वीरान मत करो,
ओ धरती के दास।।

No comments:

Post a Comment