''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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.बैर से बैर नहीं मिटता है, यह मिटता है प्यार से....

>> Sunday, October 25, 2009

ब्लाग को हम एक बाग़ बनायें. सुन्दर-सुगन्धित बाग़, जहां विचारो के सुमन खिले. इसे  उजड़ा चमन न बनाये. लोग, बाग में आयें तो वे फूलों की खुशबू साथ ले जाये, कचरे की बदबू नहीं. कहने का मतलब यह ,कि हमारे शब्द चलताऊ न हो, अश्लील न हो. कभी-कभी मै कुछ् ब्लागों की भाषा में अश्लीलता भी देखता हूँ, अराजकता भी दिखाई देती है. तब दुःख होता है.. मान लिया भाई, कि देश आजाद है और ब्लाग आप की अपनी स्वतंत्रता का एक कोना है, इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि पूरी दुनिया तक अपना वैचारिक मैल फैला दें? शालीनता के कपडे ही उतर फेंके और गर्व से कहें, कि हम आजाद हैं,? हम को एक तकनीक मिल गयी, उसका थोडा -बहुत ज्ञान भी मिल गया, इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि हम बड़े तीसमारखां हो गए ? सर्जना एक चाकू है. इससे किसी की गर्दन नहीं काटनी है, बुराईयों का आपरेशन करना है,  बिलकुल एक शल्यचिकित्सक  की भांति. वैसे कभी-कभार ही मैंने ऐसा देखा है. अधिकांश ब्लाग तो लोकमंगल की भावनाओं से ही भरे हुए है. सचमुच ये लोग बड़ा काम कर रहे है. मुझे इन सब से बड़ी प्रेरणा मिल रही है. मित्रों  के आग्रह पर मैंने नेट लगाया, अपना ब्लाग बनाया. सोचा, देखे तो इस दुनिया में है क्या. अब लगता है, कि ब्लाग की दुनिया में आकर मैंने गलत नहीं किया. अनेक नए लेखकों से मिलने का , उनकी रचनाओं को भी पढ़ने का सुअवसर मिला, बहुत कुछ सीखने का मौका मिला. यह बड़ी बात है. अनेक सुधी पाठक भी मिले, लगा कि सर्जना को सराहने वाले भी कम नहीं है. वे जब फोन करके रचनाओं की तारीफ करते है तो लगता है गीत का जन्म लेना सफल हो गया. आग्रह बस यही है, कि ब्लॉगों को अपनी भाषिक अराजकताओं का केंद्र न बनायें .एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है.खैर, कोई आजाद ख्याल वाला शख्स ऐसा करे भी तो हम क्या कर सकते है. हमें तो अपने सुन्दर काम  करने है. सर्जना -पथ के पथिक को अगर किसी एक भी सुधी पाठक की प्रशंसा मिलती है, तो उसे लेखन सार्थक लगता है लेकिन प्रशंसा न भी मिले तो सच्चे लेखक को इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए.सृजन लोक मंगल के लिए हो, शालीन भाषा में हो, कुंठा से मुक्त हो और सबसे बड़ी बात, उसका उद्देश्य हो सामाजिक परिवर्तन. स्वान्तः सुखाय तो होनी ही चाहिए रचना, मगर वह परदुखकातरता से भरी हो, उसमे सर्वजन हिताय भी ध्वनित होता हो, तो क्या बात है. बहरहाल प्रस्तुत है फिर एक गीत-

गीत ...
बैर से बैर नहीं मिटता है, यह मिटता है प्यार से.
बुद्ध यही बुद्धि देते हैं, कह दो यह संसार से..

जब अंतस निर्वैर रहे तो, शांति-प्रेम इठलाता है.
जो है करुणावान वही तो महावीर बन जाता है.
जीतो जगती को तुम अपने सुन्दरतम व्यवहार से.
बैर से बैर नहीं मिटता है, यह मिटता है प्यार से.....

नफ़रत  मिट जायेगी पहले, प्रेम-पियाला छलकाओ.
क्रोध मरेगा, शांत ह्रदय में  करके यह तो दिखलाओ.
दुनिया सुन्दर बन जायेगी, मानव के श्रृंगार से.
बैर से बैर नहीं मिटता है, यह मिटता है प्यार से.....

ज्यादा अर्जित हो जाये तो, उसमे से कुछ दान करो.
देने का हो भाव हमेशा, जब-जब भी तुम ध्यान करो.
नाम अमर रह जाता है बस,  ऐसे ही उपहार से..

बैर से बैर नहीं मिटता है, यह मिटता है प्यार से.
बुद्ध यही बुद्धि देते हैं, कह दो यह संसार से..
 गिरीश पंकज 

5 टिप्पणियाँ:

ब्लॉ.ललित शर्मा October 25, 2009 at 11:54 PM  

बैर से बैर नहीं मिटता है, यह मिटता है प्यार से.
बुद्ध यही बुद्धि देते हैं, कह दो यह संसार से..
बुद्धम शरणम गच्छामि,
आपके श्रेष्ठ विचारों का हम सम्मान करते हैं

परमजीत सिहँ बाली October 26, 2009 at 12:01 AM  

पोस्ट बहुत बढिया लगी।
गीत बहुत सुन्दर व बढिया है। बहुत सही कहा है-

जब अंतस निर्वैर रहे तो, शांति-प्रेम इठलाता है.
जो है करुणावान वही तो महावीर बन जाता है.
जीतो जगती को तुम अपने सुन्दरतम व्यवहार से.
बैर से बैर नहीं मिटता है, यह मिटता है प्यार से.....

अजित गुप्ता का कोना October 26, 2009 at 5:16 AM  

पहले सोचते थे कि शिक्षा से सभ्‍यता जन्‍म लेती है लेकिन आज कुछ लोगों के लेखन से लगता नहीं कि शिक्षा से ही सभ्‍यता आती है। इसके लिए संस्‍कारों की आवश्‍यकता है। आपने अच्‍छा लिखा है गद्य और पद्य दोनों ही।

शरद कोकास October 26, 2009 at 1:11 PM  

ब्लॉग को बाग़ बनाने का यह खयाल उम्दा है ।

Yogesh Verma Swapn October 26, 2009 at 7:10 PM  

girish ji , hamesha ki tarah lajawaab geet. badhaai sweekaren.

सुनिए गिरीश पंकज को

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