नई ग़ज़ल / सभी के हैं शिखर अपने जहाँ भी जो खड़े हैं जी
>> Tuesday, June 28, 2011
कहीं पर वे बड़े होंगे कहीं पर हम बड़े हैं जी
सभी के हैं शिखर अपने जहाँ भी जो खड़े हैं जी
कोई छोटा-बड़ा क्या हैं सभी इंसान धरती के
मगर उनको भरम हैं खास मिट्टी से गढ़े हैं जी
हमें यूं ही नहीं मिल पाई है उपलब्धि जीवन में
ज़माने के हरेक शातिर से कितना हम लड़े हैं जी
अभी तो दूर है मंजिल हमें कुछ और चलना है
अभी तो चार कदमों तक ही केवल पग बढ़े हैं जी
जरा दौलत निकालें और भूखे पेट कुछ भर दें
सुना है आप सोने और चाँदी से मढ़े हैं जी
ये जीवन पाठशाला है यहाँ वे फेल हो जाते
मगर डिगरी कमाने पुस्तकें काफी पढ़े हैं जी
यहाँ सब लोग मिहनत से गगन छूते रहे अक्सर
मगर कुछ लोग कंधों पर यहाँ दिखते चढ़े हैं जी
रहे गलती पे हरदम किन्तु उनका दम्भ तो देखो
बड़े बेशर्म हो कर अपनी जिद पर बस अड़े हैं जी
सफलता उनके माथे पर सदा चंदन लगाती है
जो ईमां और उसूलों के सवालों पर कड़े हैं जी
इन्हें मत रोप देना ये फसल बर्बाद कर देंगे
ये हैं वो बीज भीतर से गले या के सड़े हैं जी
बताई ज्ञान की बातें समझ में कुछ नहीं आया
वे मुसका कर बोले हम तो बस चिकने घड़े हैं जी
ये हैं वो बीज भीतर से गले या के सड़े हैं जी
बताई ज्ञान की बातें समझ में कुछ नहीं आया
वे मुसका कर बोले हम तो बस चिकने घड़े हैं जी
रहे अपनी ठसन में इसलिए कुछ कर नहीं पाए
जहाँ से थे चले अब तक वही पर वे खड़े हैं जी
यहाँ होता है ऐसा भी कोई पत्थर चमक जाए
मगर पंकज कई हीरे अभी यूं ही पड़े हैं जी
16 टिप्पणियाँ:
सफलता उनके माथे पर सदा चंदन लगाती है
जो ईमां और उसूलों के सवालों पर कड़े हैं जी
इन्हें मत रोप देना ये फसल बर्बाद कर देंगे
ये हैं वो बीज भीतर से गले या के सड़े हैं जी
बहुत बेहतरीन....
कहीं पर वे बड़े होंगे कहीं पर हम बड़े हैं जी
सभी के हैं शिखर अपने जहाँ भी जो खड़े हैं जी
...बहुत सार्थक और सटीक सोच...लाज़वाब गज़ल.
रहे गलती पे हरदम किन्तु उनका दम्भ तो देखो
बड़े बेशर्म हो कर अपनी जिद पर बस अड़े हैं जी
वाह! क्या खूबसूरत गजल कही है आपने !
सफलता उनके माथे पर सदा चंदन लगाती है
जो ईमां और उसूलों के सवालों पर कड़े हैं जी
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
हमें यूं ही नहीं मिल पाई है उपलब्धि जीवन में
ज़माने के हरेक शातिर से कितना हम लड़े हैं जी
bahut hi badhiyaa
जय हो
रऊवां त एकदमे छा गईनी महाराज ,
हमें यूं ही नहीं मिल पाई है उपलब्धि जीवन में
ज़माने के हरेक शातिर से कितना हम लड़े हैं जी
अभी तो दूर है मंजिल हमें कुछ और चलना है
अभी तो चार कदमों तक ही केवल पग बढ़े हैं जी
सभी शेर एक से बढ़कर एक..... वाह!
गिरीश जी बहुत बढ़िया गज़ल कही है.. बधाई..
bahut badhiya aur sach..
हमें यूं ही नहीं मिल पाई है उपलब्धि जीवन में
ज़माने के हरेक शातिर से कितना हम लड़े हैं जी
सच्चाइयो को प्रस्तुत करती बेहद शानदार गज़ल्।
यहाँ होता है ऐसा भी कोई पत्थर चमक जाए
मगर पंकज कई हीरे अभी यूं ही पड़े हैं जी
......bahut badhiya ghajal.
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है भईया... आनंद आ गया....
सादर..
इन्हें मत रोप देना ये फसल बर्बाद कर देंगे
ये हैं वो बीज भीतर से गले या के सड़े हैं जी
बहुत खुब जी एक बहुत अच्छी गजल
आज की मानव हकीकत और दंभ को कागज़ पर उतार दिया गिरीश भाई ....बड़े लोग बुरा मान जायेंगे :-)
हार्दिक शुभकामनायें और आभार इस प्यारी रचना के लिए !
प्रणाम !
रहे गलती पे हरदम किन्तु उनका दम्भ तो देखो
बड़े बेशर्म हो कर अपनी जिद पर बस अड़े हैं जी
वाह! खूबसूरत गजल !
बधाई
सादर
हम भी अपनी आहुति से सींच देगें
आदरणीय पंकज जी आज के संमार्ग (कोलकाता) में आपका एक लेख प्रकाशित हुआ पढ़कर अच्छा लगा कि अभी भी लोकतंत्र की नींव काफी मजबूत है जहाँ आप जैसे कलमकार जीवित हैं, इसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। एक बार तो संमार्ग के एक संपादकिय लेख को पढ़कर बड़ी निराशा हुई इससे पहले भी सन्मार्ग के कुछ संपादकीय मुर्खता पुर्ण मानसिकता से भरे हुए थे। खैर छोड़िये इन बातों को। वर्तमान काल की भाषा में सिर्फ सरकारी तानाशाहों को ही पूरी आजादी प्राप्त है देश की बात कहने की कहने की बाकी कोई व्यक्ति अब कुछ कहने का अधिकार ही नहीं रखता अन्यथा संसद की मर्यादा भंग हो जायेगी, मानो लग रहा हो कि हम किसी गुप्त आपातकाल के दौर से गुजर रहे हैं। जबकि भारतीय संविधान के तहत ‘‘ जनता के प्रतिनिधि- जनता के द्वारा और जनता के लिए।’’ ही खुद को चुने हुए एवं बाकी को अलग मानते हंै और इसी भाषा का प्रयोग कुछ मीडिया और समाचार पत्र वाले करें तो क्या कहा जा सकता है। इनकी तो रोजी-रोटी का सवाल जुड़ा हुआ है इनसे। भला इनसे पंगा लेकर कैसे ये लोग अपना धन्धा कैसे चला पायेगें? सो रोजी रोटी से समझौता करके भला कोई अन्ना हजारे और अरविन्द केजड़ीवाल की इस लड़ाई को क्यों साथ देगा। परन्तु आपकी इस पंक्ति से अपनी बातों को विराम दूंगा -
इन्हें मत रोप देना ये फसल बर्बाद कर देंगे
ये हैं वो बीज भीतर से गले या के सड़े हैं जी।
आपके इस बीज रोपन कार्य को हम भी अपनी आहुति से सींच देगें।
शुभकामनाओं के साथ आपका ही- शम्भु चौधरी
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