''सद्भावना दर्पण'

दिल्ली, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में पुरस्कृत ''सद्भावना दर्पण भारत की लोकप्रिय अनुवाद-पत्रिका है. इसमें भारत एवं विश्व की भाषाओँ एवं बोलियों में भी लिखे जा रहे उत्कृष्ट साहित्य का हिंदी अनुवाद प्रकाशित होता है.गिरीश पंकज के सम्पादन में पिछले 20 वर्षों से प्रकाशित ''सद्भावना दर्पण'' पढ़ने के लिये अनुवाद-साहित्य में रूचि रखने वाले साथी शुल्क भेज सकते है. .वार्षिक100 रूपए, द्वैवार्षिक- 200 रूपए. ड्राफ्ट या मनीआर्डर के जरिये ही शुल्क भेजें. संपर्क- 28 fst floor, ekatm parisar, rajbandha maidan रायपुर-४९२००१ (छत्तीसगढ़)
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विश्व मैत्री दिवस पर ...

>> Saturday, July 31, 2021



मित्र मुसीबत में सदा, होता खूब सहाय।
जब आये संकट कोई, बढ़कर हमें बचाय।।

सुख में रहते साथ पर, दुख में जाते भूल।
ऐसे भी कुछ मित्र हैं, केवल नकली फूल।।

स्वारथ के इस दौर में, बिल्कुल नहीं विचित्र ।
लोग उसे ही दे दगा, बनते जिसके मित्र।।

मित्र महकता इत्र-सा, कभी न छोड़े साथ।
पर जो नकली क्या पता, कब दे दे वह घात।।

मित्र बने और एक दिन,  माँगा बड़ा उधार ।
खोज रहे हम बाद में, अब वे कहीं फरार।।

@ गिरीश पंकज

12 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) August 1, 2021 at 6:06 AM  

बेहतरीन दोहे ।

हर दोहा सार्थक संदेश देता हुआ ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) August 1, 2021 at 8:01 AM  

आपकी लिखी रचना सोमवार 2 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

yashoda Agrawal August 1, 2021 at 9:10 PM  

मित्र बने और एक दिन,
माँगा बड़ा उधार ।
खोज रहे हम बाद में,
अब वे कहीं फरार।।
व्वाहहहहह..
सादर नमन

SANDEEP KUMAR SHARMA August 2, 2021 at 12:02 AM  

मित्र महकता इत्र-सा, कभी न छोड़े साथ।
पर जो नकली क्या पता, कब दे दे वह घात।। बहुत सुंदर रचना...।

Sweta sinha August 2, 2021 at 12:40 AM  

सत्य का दर्पण ... अत्यंत सुंदर दोहे।

प्रणाम
सादर।

Anupama Tripathi August 2, 2021 at 2:58 AM  

बदलते वक़्त के साथ मित्र की परिभाषा भी बदल रही !! लेकिन असली मित्र अभी भी साथ निभाते हैं !! सुंदर दोहे !!

रेणु August 2, 2021 at 3:16 AM  

आजके छद्म मित्रों का सटीक चरित्र चित्रण आदरणीय पंकज जी। ये गति भुगतने वाले आसपास ही मिल जायेंगे

मित्र बने और एक दिन, माँगा बड़ा उधार ।
खोज रहे हम बाद में, अब वे कहीं फरार।।

😀😀😀😀😀🙏🙏

जिज्ञासा सिंह August 2, 2021 at 4:56 AM  

बहुत सुंदर सार्थक दोहे।आज के दौर की मित्रता का सुंदर चित्रण।

Sudha Devrani August 2, 2021 at 5:21 AM  

वाह!!!
लाजवाब दोहे।

Amrita Tanmay August 2, 2021 at 8:08 AM  

मित्र एक पर रंग अनेक । बहुत ही सुन्दर कहा ।

वाणी गीत August 2, 2021 at 10:24 AM  

मित्र की अन्य परिभाषा...
दोस्त बनकर गले ललगाता है वही
पीठ पर खंजर भी लगाता है वही जैसी!

girish pankaj August 6, 2021 at 5:45 AM  

सभी मित्रों का आभार

सुनिए गिरीश पंकज को

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