ग़ज़ल / जीवन बेहतर होने का अभ्यास है......
>> Monday, January 9, 2012
आज कुछ हट कर श्रृंगार...मेरा नाम 'गिरीश' है, मगर इसमें 'पंकज' भी है..कोमलता का तत्व...
दूर बहुत है लेकिन यह अहसास है
वो पहले से ज्यादा मेरे पास है
वो पहले से ज्यादा मेरे पास है
प्यार अगर बिल्कुल रूहानी हो जाए
हर पल, हर क्षण प्रियतम का आभास है
दिल के भीतर बैठा रहता है अक्सर
मुझको लगता वह मेरा मधुमास है
देह से ऊपर उठ कर जब मैंने देखा
मन का निर्मल-सुंदर ये आकाश है
अंतहीन है इसको कौन बुझा पाया
दिल के भीतर बैठी पगली प्यास है
वो छल है सम्बन्ध नहीं कहलायेगा
जिसमे केवल कुछ पाने की आस है
उसको चैन कभी कैसे मिल पाएगा
जो केवल इच्छाओं का ही दास है
अपना तो है लक्ष्य भला इनसान बनूँ
जीवन बेहतर होने का अभ्यास है
कौन यहाँ रहता है ज़िंदा सदियों तक
मरना ही तो सबका इक इतिहास है
ये दुनिया है मीठी चटनी-सी पंकज
खट्टी भी है लेकिन बड़ी मिठास है
8 टिप्पणियाँ:
वाह !!! बहुत ही सुंदर एवं सार्थक गीत पंकज जी समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
वाह ...बहुत खूब
कल 11/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, उम्र भर इस सोच में थे हम ... !
धन्यवाद!
बेहतरीन गजल है सर!
सादर
बहुत सुन्दर,,सचमुच खट्टी मीठी..
सादर.
वो छल है सम्बन्ध नहीं कहलायेगा
जिसमे केवल कुछ पाने की आस है
बेहतरीन
आनंद आ गया भईया....
शानदार ग़ज़ल...
सादर प्रणाम.
गिरीश भाई की रचनाओं पर टिप्पणी करने में अपने आपको असमर्थ पाती हूं
यशोदा
सदा जी की हलचल से आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा.
बहुत बहुत शुभकामनाएँ.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार जी.
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