पृथ्वी दिवस पर लघुकथा / ईश्वर की प्रतीक्षा
>> Tuesday, April 22, 2014
धरती अपने पुत्रों की बेरुखी से परेशान थी।
जिसे देखो, धरती को कचराघर बनाने पर तुला था।
एक दिन धरती गाय के पास पहुँची।
गाय भी अपने बेटो से दुखी थी।
दोनों गंगा के पास गए. गंगा भी अपनी औलादो से त्रस्त मिली।
अब क्या करें।
तीनो पर्वत के पास पहुँचे, मगर वह भी अपनी औलादो से दुखी था,
फूट-फूट कर रोने लगा, ''अब तो भगवान ही कुछ करेंगे।''
सब ईश्वर के पास पहुंचे।
उन्हें देख कर अन्तर्यामी ईश्वर अन्तर्धान हो गए।
धरती, गाय, गंगा, और पर्वत अब तक ईश्वर की प्रतीक्षा में हैं ।
जिसे देखो, धरती को कचराघर बनाने पर तुला था।
एक दिन धरती गाय के पास पहुँची।
गाय भी अपने बेटो से दुखी थी।
दोनों गंगा के पास गए. गंगा भी अपनी औलादो से त्रस्त मिली।
अब क्या करें।
तीनो पर्वत के पास पहुँचे, मगर वह भी अपनी औलादो से दुखी था,
फूट-फूट कर रोने लगा, ''अब तो भगवान ही कुछ करेंगे।''
सब ईश्वर के पास पहुंचे।
उन्हें देख कर अन्तर्यामी ईश्वर अन्तर्धान हो गए।
धरती, गाय, गंगा, और पर्वत अब तक ईश्वर की प्रतीक्षा में हैं ।
3 टिप्पणियाँ:
अपनी-अपनी आदत होती है -जूतों के देव बातों से नहीं मानते ,,.वही हो रहा है.कोई नियम-संयम नहीं मानते जब तक डंडे का डर न हो.यही भारतीय विदेशों में जाकर एकदम सुधर जाते हैं !
मतलब आप भी इसी इसी तरह के इंसान हैं >> http://corakagaz.blogspot.in/2014/06/civilization-and-moon.html
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