''सद्भावना दर्पण'

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भाजपा तेरे राज में गौ सेवक पिटे समाज में

>> Sunday, November 2, 2014

गायों की दुर्दशा न हो भाजपा के राज में 


आम चुनाव से पहले हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी गंगा की सफाई के साथ-साथ गायों की बात भी किया करते थे। उन्होंने कहा था  गौ मांस के निर्यात पर रोक भी लगाएंगे। गंगा की सफाई तो शुरु हो चुकी है मगर गाय के सवाल पर खामोशी बरकरार है। पिछले दिनों नागपुर में सर संघ चालक मोहन भागवत ने भी भाजपा सरकार से दो मांगे प्रमुखता से रखी थी। एक थी गो हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध और दूसरी मांग गौ मांस के निर्यात पर रोक। दुर्भाग्य यह है कि भाजपा सरकार इस मामले में कोई संज्ञान नहीं ले रही है। 31 अक्टूबर को उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी ने एक बड़ी बात कही, उसे इस देश की सांस्कृतिक परम्परा से जोड़ कर देखने की जरूरत है। उन्होंने साफ कहा कि इस देश में जो गाय काटते हैं उन्हें इस देश में रहने का हक नहीं है। क्योंकि गाय हमारी माता है और हम लोग उनसे जुड़े हुए हैं। गोपाष्टमी के मौके पर अजीज कुरैशी जी का यह बयान मायने रखता है। इस देश का हर सच्चा मुसलमान गाय के प्रति आस्था रखता है। राजस्थान और अन्य कुछ क्षेत्रों में अनेक मुसलमान गौ शालाएँ चला रहे हैं। बूढ़ी गायों की सेवा कर रहे हैं। मुजफ्फर अली और फैज खान जैसे लोगों ने तो अपना जीवन ही गौ सेवा को समर्पित कर दिया है। फैज खान ने गतवर्ष गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग को ले कर जंतर-मंतर पर आमरण अनशन ही शुरु कर दिया था। बीस-पचीस दिन बाद बाबा रामदेव ने अनशन तुड़वाया था। कहने का मतलब यह है कि जब इस देश का समझदार मुसलमान भी गायों के प्रति इतना लगाव रखता है तो भारतीय संस्कृति की बात करने वाली भाजपा सरकार इस मुद्दे पर अब तक क्यों उदासीन है। बाजपा सरकार को इस बात पर भी शर्मसार होना चाहिए कि उनके सत्ता पर विराजमान होने के बाद से गौ मांस के निर्यात में और तेजी आई है। आंकड़े बता रहे हैं कि गौ मांस का निर्यात पिछले छह महीने में तीन प्रतिशत बढ़ा है। काला धन  विदेशों से कब आएगा या नहीं आएगा, मगर हमारे देश का (श्वेत)गौ-धन तो मांस की शक्ल में विदेश जाने से रुके। यह काम सरकार ही कर सकती है लेकिन इस सवाल पर भाजपा सरकार का मौन आम हिंदुस्तानियों को खल रहा है। 

 गायों की रक्षा के मामले में सरकार मौन है मगर इस देश में जगह-जगह धरना-प्रदर्शन होता रहता है। रैलियाँ भी निकलती रहती हैं।  आगामी 7 नवंबर को दिल्ली में देश भर के गौ प्रेमी जुटने वाले हैं। अभी  31 अक्टूबर को दिल्ली में गोपाष्टमी के दौरान गौ हत्या पर रोक की मांग को  लेकर सत्याग्रह कर रहे गोपाल दास महराज को दिल्ली पुलिस ने जिस बुरी तरह पीटा, वह अपने आप में बड़ी चिता की बात है।  उनके गुप्तांग पर प्रहार किया गया, उनके बाल भी उखाड़े। उन्हें पीटपीट कर अधमरा कर दिया गया। यह खबर मुख्य मीडिया में कहीं सुर्खी नहीं बनी, मगर सोशल मीडिया में जख्मी गोपालदास के फोटो जारी हुए जिसे देख कर लोग विचलित हो गए। सबकी जुबान पर एक ही सवाल था कि हम लोग कैसा भारत बना रहे हैं कि अपने ही देश में गाय की बात करना अपराध हो गया है? गौ हत्या पर रोक की मांग जुर्म है? शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने वाले गौ भक्तों को पीटा जाता है, जेल में ठूँस दिया जाता है। एक तो वैसे भी इस देश में गौ वंश तेजी के साथ घटता जा रहा है, मांस खाने वाले बढ़ रहे हैं, गौ मांस का निर्यात बढ़ रहा है, तो क्या लोग इसके खिलाफ प्रदर्शन भी नहीं कर सकते? ऐसे  लोगों को पुलिस दमन करेगी। भाजपा के शासन काल में भी अगर गौ भक्त पीटे जाएं तो अंगरेजों का राज क्या बुरा था जब गौ भक्तों को फांसी पर लटका दिया जाता था और उनकी निर्मम पिटाई होती थी।
 
महात्मा गांधी गुलामी के दौर में अनेक स्वप्न देखते थे। उनमें उनके दो स्वप्न यह बी थे कि देश आजाद होगा तो हिंदी इस देश की राष्ट्रभाषा बनेगी और गौ हत्या पर रोक लग जाएगी, कसाई खाने बंद हो जाएंगे। मगर गांधी के ये दोनों स्वप्न अधूरे रहे। और लगता है ये सपने सपने ही रह जाएंगे। प्रश्न यह है कि अगर हमारे देश में लोक तंत्र है तो क्यों नहीं लोक की इच्छा का सम्मान किया जाता? हिंदी की बुरी हालत है। उसे कोई रोक नहीं सकता और अब गायों की दुर्दशा को भी रोक पाना असंभव दीख रहा है। लगता है वे लोग पागल हैं जो गौ हत्या रोकने की बात करने धरना-प्रदर्शन करते हैं। इन लोगों को अब इस सत्य को स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि इस देश में गाय का सवाल उठाना भी एक तरह का अपराध है। समय की बर्बादी है। सरकार सुनेगी नहीं, उल्टे सिर फोड़ देगी। पुलिस अपने मन से लाठियाँ नहीं चलाती, उसे इशारा होता है, तब चलाती है।  आज से पचास साल पहले दिल्ली में सैकड़ों गौ भक्तों को उस समय की सरकार ने गोलियों से भून दिया था। कितने ही लोग घायल हुए थे। वे सारे संत और अन्य गौ भक्त थे, जो उस वक्त भी गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे थे। तो इस लोकतांत्रिक देश का यही इतिहास रहा है कि गौ भक्तों पर लाठी-गोलियाँ बरसती रही हैं। इन सबके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि किसी भी सरकार ने गाय के प्रश्न को सांस्कृतिक प्रश्न नहीं बनाया। गाय को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ कर देखने की गंभीर कोशिश ही नहीं की। भाजपा सरकार ने गोकुल मिशन के नाम पर पांच सौ करोड़ की एक योजना तो बनाई है मगर जिस देश में अब केवल पंद्रह करोड़ ही गो धन बचा हो, उसके लिए पाँच सौ करोड़ में कितना भला हो सकता है?

इस देश की देसी गायों को बचाना है तो भाजपा सरकार को गंभीर हो कर आत्ममंथन करना होगा और संघ मुख्यालय से उठी आवाज को बी सुनना-समझना होगा, उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी जी की भावना भी समझनी होगी। गाय एक पशु नहीं है, वह विश्व माता है। गाय से हमारा रिश्ता जन्म से लेकर मृत्यु तक बना रहता है। जो डंडा खा रहा है उसने भी गाय का दूध पिया है और जो डंडा बरसा रहा है, वह भी गाय का दूध पीया है। घर जा कर फि र पीयेगा। दरअसल गाय हमारी चेतना में शामिल नहीं हो पा रही है। आधुनिक बनने के चक्कर में हम अनेक अराजक चीजों से जुड़ते जा रहे हैं इस कारण हम गांव से कट रहे हैं, खेती से दूर भाग रहे हैं, गौ पालन और गौ संरक्षण के महत्व को भूल चुके हैं। यह समय स्मृतिहीनता का है। हम शायद भूल चुके हैं कि यह वही देश है जहाँ कभी कृष्ण भगवान ने अवतार लिया था और जिन्होंने गौ रक्षा के अनेक दृष्टांत प्रस्तुत  किए थे। कृष्ण-कन्हैया और गो-पाल के देश में आज गायें बदहाल हैं, निर्ममतापूर्वक काटी जा रही है। और उनको बचाने की मांग करने वालों पर पुलिस लात-घूसे और लाठियाँ बरसा रही है। वह भी गोपाष्टमी के दिन। यह सब देख कर विचलन होती है। इस देश का आम नागरिक अपनी अभिव्यक्ति के लिए केवल प्रदर्शन ही कर सकता है, अगर हिंसा के सहारे उसका यब अधिकार भी छीन लिया जाएगा तो आखिर वह प्रदर्शन करने क्या संयुक्त राष्ट्र के पास जाएगा? मोदी जी, कुछ सोचिए और गाय के सवाल को इस देश की सांस्कृतिक अस्मिता से जोडि़ए, वरना गौ मांस का निर्यात बढ़ता जाएगा, गौ वंश घटता जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो इतिहास भाजपा सरकार को कभी माफ नहीं करेगा। एक कलंक इस पार्टी के माथे पर लगा रहेगा कि भाजपा सरकार के रहते गायों की दुर्दशा होती रही और गौ भक्त पिटते रहे, जेलों में ठूँसे जाते रहे। इस देश के लोगों को अंतर तो समझ में आना चाहिए कि देश में भाजपा की सरकार बनी है। 

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