व्यंग्य
>> Monday, June 21, 2021
एक पत्र सरकार के नाम
प्रिय सरकार जी,
उम्मीद है कि आप गैंडे की ही तरह मोटी खाल के साथ अब तक मोटे ताजे बने होंगे। मगरमच्छ की तरह आप के आँसू समय-समय पर निकलते ही होंगे । आपकी यह प्रतिभा देखकर कई बार हम सोचते हैं कि काश! हम लोग भी इस कला में माहिर हो जाते, तो एक दिन हमहू सरकार बन जाते । लेकिन हम बेचारे किस्मत के मारे , लगता है केवल वोट देने के लिए ही इस धरा पर जन्मे हैं । और एक दिन उसी तरह निराश हताश होकर बैक टू पैवेलियन हो जाएंगे । खैर,नसीब में जिसके जो लिखा था ,वो तेरी महफिल में काम आया। याद है, पिछली बार जब आप वोट मांगने आए थे, तो आपने भिखारियों को भी मात कर देने वाली शैली में गिड़गिड़ा कर हमसे वोट मांगा था। आपके इस कातर अभिनय से हम प्रभावित हो गए थे और आपको अपना वोट दे दिया था। अपने परिवार का वोट दिलाया और पूरे मोहल्ले में आप का गुणगान भी किया । क्योंकि आपका जो घोषणापत्र था, उसे देख कर लगा कि अब तो देश में चमत्कार होने वाला है । इस देश के गरीब लोगों के अच्छे दिन आने वाले हैं । हर व्यक्ति मालामाल हो जाएगा। समाज खुशहाल हो जाएगा । लेकिन वही हुआ लेकिन जिसका डर था बेदर्दी वही बात हो गई । आपने 'वोटार्जन' करने के बाद विजयश्री हासिल की और सीधे राजधानी जाने के बाद ऐसे गायब हुए, जैसे गधे के सिर से सींग। हम आपको खोजते रह गए। लेकिन आपके दर्शन नहीं हुए ।
हम बहुत दूर रहते हैं। राजधानी का आने जाने का किराया अपने पास है नहीं, इसलिए सोचा पत्र लिखकर ही आपको याद दिला दूँ कि हम लोग अच्छे दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। पता नहीं ये कब आएंगे । हालांकि किसी समझदार व्यक्ति ने हमें समझाया था कि बेटे अच्छे दिन आने की का वादा तो किया गया था लेकिन किसके अच्छे दिन आएंगे, यह कहां बताया था । भले ही तुम्हारे बुरे दिन आ गए हैं लेकिन देखो न, चुनाव जीतकर सरकार बनने वाले के तो अच्छे दिन आ ही गए हैं न! तो सरकार जी आपने गलत नहीं कहा था। आपके अच्छे दिन आ गए हैं । और कम-से-कम पाँच साल तक तो ये अच्छे दिन बने रहेंगे । उसके बाद आपके बुरे दिन आएंगे ही आएंगे । लेकिन आपको इसकी चिंता नहीं, क्योंकि आपको लगता है अभी तो पाँच साल बहुत दूर है । लेकिन इंसानियत का तकाजा यह है कि आप अपने अच्छे दिनों में से कुछ अच्छे दिन गरीब जनता के लिए भी निकाल कर रखें।
अब आप देख ही रहे हैं कि पेट्रोल की कीमत आकाशगामी हुई जा रही है । खाने का तेल भी आम आदमी का तेल निकाल रहा है । अनाज के दाम भी हमारे कलेजे को हिला रहे हैं और आप हैं कि राजधानी में बैठकर सिर्फ मुस्कुरा रहे हैं! यह और बात है कि जब कभी लगता है कि जनता को भावुक कर देना चाहिए ,तो आप मगरमच्छ की तरह अश्रुपात करने लगते हैं। आपकी हरकत देखकर घडियाल भी मन-ही-मन हँसता है और सोचता है कि नेता लोगों में हमारा गुण कहां से आ गया? मुझे तो यह भी पता चला है कि गिरगिट भी आपके सामने लज्जित हुआ जाता है क्योंकि जिस फुर्ती के साथ आप दल और अपनी बात बदलते हैं, उतनी फुर्ती के साथ तो गिरगिट भी रंग नहीं बदलता। बेहतर हो कि आप अपना चुनाव चिन्ह अब गिरगिट रख लें। ऐसा किया तो मुझे विश्वास है कि आप को और अधिक वोट मिलेंगे। लोग कहेंगे कि देखो कितना महान व्यक्ति है। जैसा चरित्र है वैसा ही इसका चुनाव चिन्ह भी है।
हमरा यह मेरा प्रेमपत्र पढ़कर तुम नाराज मत होना क्योंकि तुम मेरे नेता हो। नेता क्या हो नंबर वन अभिनेता हो। बॉलीवुड वाले भी तुम्हारे अभिनय को देखकर मन-ही-मन भयग्रस्त हो जाते हैं। वे सोचते हैं कि अगर तुम राजनीति छोड़ कर फिल्म लाइन में आ गए तो उन बेचारों का क्या होगा। तुम नंबर वन अभिनेता के रूप में फटाफट फिल्में साइन करने लगोगे। अच्छा है कि तुम राजनीति में बने हो और वहीं अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हो।
हम यह जानते हैं कि कि आप सत्ताधीश बनने के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखते। आपको याद ही नहीं रहता कि कोई कहीं कोई जनता-वनता भी है, जिसने हमें चुनाव जीता कर राजधानी भेज दिया । आपकी हालत उस राजा दुष्यंत की तरह है, जो शकुंतला के साथ विवाह रचाने के बाद उसे भूल गया था। जब उसे अंगूठी दिखाई गई,तब राजा को अपने अतीत का स्मरण हो आया था। तुम भी कलयुग के दुष्यंत हो। पाँच साल बाद चुनाव रूपी अंगूठी देखते ही तुम्हें जनता रूपी शकुंतला की याद आती है। और उसके सामने तुम आंसू बहाते हुए कहते हो, रानीजी मुझे माफ करना, गलती म्हारे से हो गई। आप वर्षों से यही कर रहे हो। और न जाने कब तक करते रहोगे । मगर यह पत्र सिर्फ इसी आग्रह के साथ भेजा जा रहा है कि अब तो सुधर जाओ! हालांकि तुमने अपने समय की एक हिट फिल्म 'हम नहीं सुधरेंगे' कई बार देखी थी, इस कारण तुमसे सुधरने की उम्मीद तो नहीं की जा सकती। फिर भी जनता हमेशा उम्मीद से रहती है। और तुम्हारे हर नारे पर उसे बड़ा भरोसा रहता है । कभी तुमने कहा था, गरीबी हटाएंगे, मगर गरीबी तो हटी नहीं, अलबत्ता अमीर बढ़ गए। गरीब बेचारा जहाँ-का-तहाँ रह गया। तुमने शाइनिंग इंडिया का नारा दिया। पर इंडिया तो मुरझाया रहा, हाँ, तुम्हारे चेहरे की शाइनिंग बढ़ गई। फिर तुमने कहा इस बार अच्छे दिन आएंगे। लेकिन वर्षों हो गए हमारे अच्छे दिन नहीं आए । हां कुछ धनपतियों के भी ज़बरदस्त अच्छे दिन आ गए । मतलब है, तुमने सही कहा था कि अच्छे दिन आएंगे। चलो, किसी के तो आए।
खैर ! पत्र लंबा हो रहा है । कहने को बहुत कुछ है । मगर कहने से कोई लाभ तो होगा नहीं, क्योंकि तुम अभी कुरसी पर विराजमान हो और जो व्यक्ति कुरसी पर विराजमान हो जाता है, वह न तो देख पाता है और न सुन पाता है। बस उसे एक ही कला आती है, वो है खाने की कला। जीमते रहे हो ।लेकिन हमारा आग्रह है कि इतना भी मत जीम लो कि अपच के शिकार हो कर यहाँ- वहाँ गैस छोड़ कर प्रदूषण फैलाने लग जाओ। बाद में तुम्हारा लिवर भी डैमेज हो जाए।
बहुत पहले एक नारा दिया गया था, जियो और जीने दो । तो तुमसे यही आग्रह है कि खुद जी रहे हो तो जनता को भी जीने का मौका दो । ऐसी योजनाएं बनाओ कि तुम तो भले ही मालपुआ खाते रहो, मगर इस देश की गरीब जनता दो जून की रोटी तो खा सके। उम्मीद है, तुम हमारी बात को, हमारे पत्र को ध्यान से पढ़ोगे और कुछ ऐसा करोगे कि पाँच साल बाद तुम हमको अपना चेहरा दिखाने लायक रह जाओ।
बहरहाल, हमेशा की तरह दुखी,
तुम्हारी 'वो' याने की जनता।
3 टिप्पणियाँ:
जियो और जीने दो ।
तो तुमसे यही आग्रह है कि
खुद जी रहे हो तो
जनता को भी जीने का मौका दो
बहुत खूब
सादर नमन
आभार
ये तो ज़बरदस्त पत्र भेजा गया ... जवाब तो आना नही और न आया । बस इंतज़ार करिए।
बढ़िया व्यंग्य
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