''सद्भावना दर्पण'

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ग़ज़ल/ झूठे लोगों ने चुनाव में

>> Monday, July 17, 2023


इश्तहार तो आकर्षक हैं पर कितनी सच्चाई है 

झूठे लोगों ने चुनाव में महफ़िल बड़ी सजाई है


वादे, जुमले, मुस्कानें और कुछ नकली आँसू

ऐसा करके लोगों ने फिर  से सरकार बनाई है 


आपस में मिलकर रहने वाले अब लड़ते हैं

पता नहीं बस्ती में किसने आ कर आग लगाई है


यह मेरा, वो तेरा वोटर जात- धर्म में बंटे सभी

राजनीति की कुटिल मंथरा बहुत बड़ी हरजाई है


पहले की हर एक योजना कहाँ गई कुछ पता नहीं

कुरसी पाने फिर से सत्ता नई योजना लाई है


@ गिरीश पंकज


3 टिप्पणियाँ:

Sweta sinha July 20, 2023 at 9:22 AM  

चुभती हुई गज़ल..बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ जुलाई २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

Anonymous July 21, 2023 at 3:36 AM  

यथार्थ को प्रदर्शित करती रचना। बहुत बधाई आदरणीय

संगीता स्वरुप ( गीत ) July 21, 2023 at 9:10 PM  

समसामयिक ग़ज़ल । ऐसी घटनाओं पर दिलों में आग भी कुछ समय के लिए ही जलती है ।

सुनिए गिरीश पंकज को

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