''सद्भावना दर्पण'

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आज वे बंदे हमें ही आँख दिखलाने लगे.....

>> Sunday, June 25, 2023


 चार दिन सीखे नहीं के सबको सिखलाने लगे

चंद ऐसे लोग ही हर सिम्त मंडराने लगे


हमने जिनको राह दिखलाई के तुम ऐसे चलो

आज वे बंदे हमें ही आँख दिखलाने लगे


दृष्टि लोगों की अजब धुंधली हुई इस दौर की

इसलिए सिक्के जो खोटे थे वही छाने लगे


राग दरबारी सुना कर के सियासी मंच से

कुछ बड़े चालाक भत्ते और पद पाने लगे


बेच कर के आत्मा को पा गए सम्मान तो

चंद बौने और हलकट भाव अब खाने लगे


क्या पता पिछले जनम में किस तरह के जीव थे

आज वे चमचे बने दरबार में गाने लगे


जो नहीं समझे कभी भी ज़िंदगी का फलसफा

फेसबुक में वे सभी को आज समझाने लगे


@ गिरीश पंकज


2 टिप्पणियाँ:

जिज्ञासा सिंह June 26, 2023 at 6:47 PM  

समय की सच्चाई को आइना दिखाती जरूरी रचना।

संगीता स्वरुप ( गीत ) June 26, 2023 at 10:51 PM  

सटीक । बढ़िया व्यंग्य रचना ।

सुनिए गिरीश पंकज को

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